४. श्रीओंकारेश्वर या ममलेश्वर (अमरेश्वर)
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भगवान शिव का यह परम पवित्र विग्रह मालवा-प्रांत में नर्मदा नदी के तट पर अवस्थित है। यही मांधाता पर्वत के ऊपर देवाधिदेव शिव ओंकारेश्वर रूप में विराजमान है। शिव पुराण में श्रीअमलेश्वर तथा श्रीओंकारेश्वर के दर्शन का अत्यंत महत्वमय वर्णित है। प्रसिद्ध सूर्यवंशी राजा मांधाता ने, जिनके पुत्र अंबरीष और मुचकुंद दोनों प्रसिद्ध भगवद भक्त हो गए हैं तथा जो स्वयं बड़े तपस्वी और यज्ञों के कर्ता थे, इस स्थान पर घोर तपस्या करके भगवान शंकर को प्रसन्न किया था। इसी से इस पर्वत का नाम मांधाता पर्वत पड़ गया था।
मंदिर में प्रवेश करने से पूर्व दो कोठरियों में से होकर जाना पड़ता है। भीतर अंधेरा रहने के कारण सदैव दीप जलता रहता है। ओंकारेश्वर लिंग गड़ा हुआ नहीं है प्राकृतिक रूप में है। इसके चारों ओर सदा जल भरा रहता है। इस लिंग की एक विशेषता यह भी है कि वह मंदिर के गुंबज के नीचे नहीं है। शिखर पर ही भगवान शिव की प्रतिमा विराजमान है। पर्वत से आवृत यह मंदिर साक्षात् ओंकारेश्वर रूप ही दृष्टिगत होता है। कार्तिक पूर्णिमा को इस स्थान पर बड़ा भारी मेला लगता है।
५. श्रीकेदारेश्वर
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केदारनाथ पर्वतराज हिमालय के केदार नामक शृंग पर अवस्थित है। शिखर के पूर्व अलकनन्दा के सुरमय तटपर बद्रीनारायण अवस्थित है और पश्चिम में मंदाकिनी के किनारे श्री केदारनाथ विराजमान है। यह स्थान हरिद्वार से लगभग १५० मील दूर और ऋषिकेश से १३२ मिल उत्तर में है। भगवान विष्णु के अवतार नर-नारायण ने भरतखंडे के बद्रीकाश्रम में तप किया था। वह नित्य पार्थिव शिवलिंग की पूजा किया करते थे और भगवान शिव नित्य ही उस अर्चालिंग में आते थे।
कालांतर में आशुतोष भगवान शिव प्रसन्न होकर प्रकट हो गए। उन्होंने नर-नारायण से कहा "मैं आपकी आराधना से प्रसन्न हूं, आप अपना वांछित वर मांग लें। नर-नारायण ने कहा 'देवेश ! यदि आप प्रसन्न हैं और वर देना चाहते हैं तो आप अपने स्वरूप से यही प्रतिष्ठित हो जाएं, पूजा-अर्चा को प्राप्त करते रहें एवं भक्तों के दुखों को दूर करते रहे।' उनके इस प्रकार कहने पर ज्योतिर्लिंग रूप से भगवान शंकर केदार में स्वयं प्रतिष्ठित हो गए। तदनंतर नर-नारायण ने उनकी अर्चना की। उसी समय से वे वहां 'केदारेश्वर' नाम से विख्यात हो गए। 'केदारेश्वर' के दर्शन पूजन से भक्तों को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
सत्य युग में उपमन्युजी ने यही भगवान शंकर की आराधना की थी। द्वापर में पांडवों ने यहां तपस्या की। केदारनाथ में भगवान शंकर का नित्य-सानिध्य बताया गया है और यहां के दर्शनों की बड़ी महिमा गाई गई है।
६. श्रीभीमशंकर
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भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग मुंबई से पूर्व एवं पुणे से उत्तर भीमा नदी के तटपर सहाद्रि पर स्थित है। यहीं से भीमा नदी निकलती है। कहा जाता है कि भीमाक नामक सूर्यवंशीय राजा की तपस्या से प्रसन्न होकर यहां पर भगवान शंकर दिव्य ज्योतिर्लिंग के रूप में उत्पन्न हुए थे। तभी से वे भीमाशंकर के नाम से प्रसिद्ध हो गए। किंतु शिव पुराण के अनुसार श्रीभीमाशंकर ज्योतिर्लिंग आसाम में कामरूप जिले में ब्रह्मापुर पहाड़ी में अवस्थित है। लोक कल्याण भक्तों की रक्षा और राक्षसों का विनाश करने के लिए भगवान शंकर ने वहां अवतार लिया था। इस विषय में शिवपुराण की कथा है कि कामरूप देश में कामरूपेश्वर नामक एक महान शिवभक्त राजा रहते थे। वे सदा भगवान शिव के पार्थिव पूजन में तल्लीन रहते थे।
उन्हीं दिनों वहां भीमा नामक एक भयंकर महाराक्षस प्रकट हुआ और देशभक्तों की पीड़ित करने लगा। राजा कामरूपेश्वर की शिव भक्ति की ख्याति सुनकर वह उसके विनाश के लिए वहां आ पहुंचा और जैसे ही उसने ध्यान मग्न राजा पर प्रहार करना चाहा तो उसकी तलवार भक्तपर ना पढ़कर पार्थिव लिंग पर पड़ी, भला भगवान के भक्तों का कोई अहित कर सकता है ? उसी क्षण भक्तवत्सल भगवान आशुतोष प्रकट हो गए और उन्होंने दुष्ट भीम तथा उसकी सेना को भी नष्ट कर डाला। सर्वत्र आनंद छा गया। भक्त का उद्धार हो गया। ऋषियों तथा देवताओं की प्रार्थना पर भगवान ने उस स्थान पर भीमाशंकर नाम से प्रतिष्ठित होना स्वीकार किया।
७. श्रीविश्वेश्वर
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श्रीविश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग काशी में श्रीविश्वनाथ नाम से प्रतिष्ठित है। इस पवित्र नगरी की बड़ी महिमा है। भगवान शंकर को यह काशीपुरी अत्यंत प्रिय है। शास्त्रों में कहा गया है कि इस पूरी का प्रलय काल में भी लोप नहीं होता। भगवान विश्वनाथ इसे अपने त्रिशूल पर धारण करते कर लेते हैं। यह अविमुक्त क्षेत्र कहलाता है। यहां जो कोई भी शरीर छोड़ता है ,वह मुक्ति प्राप्त कर लेता है। काशी में भगवान विश्वनाथ मरने वालों के कानों में तारक मंत्र का दान देते हैं। काशी में भगवान शंकर विश्वेश्वर के रूप में अधिष्ठित रहकर प्राणियों को भोग और मोक्ष प्रदान करते हैं। विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग की पूजा, अर्चना एवं नामस्मरण से सभी कामनाओं की सिद्धि होती है और अंत में परमपुरुषार्थ मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।
काशी में उत्तर की ओर ओंकारखंड, दक्षिण में केदारखंड एवं मध्य में विश्वेश्वर खंड है, इसी विश्वेश्वर खंड के अंतर्गत बाबा विश्वनाथ जी का प्रसिद्ध मंदिर है। श्री काशी विश्वनाथ जी का मूल्य ज्योतिर्लिंग उपलब्ध नहीं है। प्राचीन मंदिर को मूर्ति भंजक मुगल बादशाह औरंगजेब ने नष्ट-भ्रष्ट कर उस स्थान में एक मस्जिद का निर्माण किया था। भगवान विश्वेश्वर की प्राचीन मूर्ति ज्ञानवापी में पड़ी हुई बतलाई जाती है। नये विश्वनाथ मंदिर का निर्माण थोड़ा सा परे हटकर परम शिव भक्ता इंदौर की महारानी अहिल्याबाई के द्वारा किया गया है। इसके अतिरिक्त स्वामी श्री करपात्रीजी ने गढ़ा के समीप के विश्वनाथ मंदिर का निर्माण कराया, जहां दूर से खड़े होकर दर्शन पूजन करने की व्यवस्था है।
बाकि के ज्योतिर्लिंगो के बारे में जानने के लिए निचे दिए गए पार्ट्स पर क्लिक करें।
भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों का नाम कैसे पड़ा - जाने संक्षिप्त विवरण Hindi में (Part-1) --- क्लिक करें
भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों का नाम कैसे पड़ा - जाने संक्षिप्त विवरण Hindi में (Part-3) --- क्लिक करें
भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों का नाम कैसे पड़ा - जाने संक्षिप्त विवरण Hindi में (Part-4) --- क्लिक करें
भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों का नाम कैसे पड़ा - जाने संक्षिप्त विवरण Hindi में (Part-5) --- क्लिक करें
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